Sunday 27 September 2015

र्निगुण्डी

र्निगुण्डी (वाइटेक्स र्निगुण्डी)

बाहरी स्नायु संस्थान, प्लेक्स, रुट्स व नस तंतुओं में विद्युत्प्रवाह बढ़ाकर यह उन्हें उत्तेजित करती है इसी कारण इसे सिर दर्द विशेषकर ट्राइजेमिनलन्यूरेल्जिया तथा सियाटिका जैसे रोगों में विशेष लाभकारी पाया गया है । श्री चोपड़ा ग्लौसरी ऑफ इण्डियन मैडीसिनल प्लाण्ट्स पुस्तक में लिखते हैं कि किसी भी प्रकार की लंबे समय से चली आ रही जोड़ों की सूजन तथा प्रसव के गर्भाशय की असामान्य सूजन को उतारने में र्निगुण्डी पत्र चमत्कारी भूमिका निभाते हैं ।

ताजे पत्तियों को मिट्टी के पात्र में रखकर आग पर गर्म कर उसे लगाने से अथवा पत्तियों को कुचलकर शोथ वेदना वाले स्थानों पर लगाने से तुरंत लाभ होता है, ऐसा डॉ. नादकर्णी का मत है । जड़ी की छाल के टिंक्चर का प्रयोग भी रुमेटिज्म या रुमेंटौइड आर्थराइटिस के लिए बताया गया है । यूनानी चिकित्सापद्धति में निर्गुण्डी पत्र वर्गे संभालू और फल तुख्मे संभालू के नाम से प्रसिद्ध है । इन्हें दूसरे दर्ज में गर्म और खुष्क मानकर सूजन उतारने वाला तथा दर्द निवारक बताया गया है । 

होम्योपैथी में निर्गुण्डी के श्वेत पुष्प वाली प्रजाति का टिंक्चर प्रयुक्त करते हैं । डॉ. विलियम बोरिक ने इसे इण्डियन आर्निका नाम दिया है । उसके अनुसार दवा जोड़ों के दर्द में विशेष लाभकारी है । 

रासायनिक संरचना-

इस औषधि पर विस्तृत कार्य हुआ है । अनुसंधान के बाद पाया गया है कि ताजी पत्तियों का भाव आसव करने पर उसमें जल में घुलनशील एक हल्के पीले रंग का तेल मिलता है । उसकी मात्रा पत्रों में 0.04 से 0.07 प्रतिशत तक होती है । जल से कुछ ही हल्के इस तेल में 22.5 प्रतिशत एल्डीहाईड, 15 प्रतिशत फीनौल के घटक तथा 10 प्रतिशत सिनीऑल पाया गया है । दो एल्केलाइड भी पाए गए हैं, जिन्हें निशण्डीन और हाइड्रोकोटीलान नाम दिया गया है । इस पौधे की ताजी पत्तियों में प्रति सौ ग्राम 150 मिलीग्राम विटामिन सी और 3500 माइक्रोग्राम कैरोटीन होते हैं । 

फ्लेवॉन और ग्लाइकोसाइड जैसे जैविक रूप से समर्थ सक्रिय घटक निर्गुण्डी पत्रों में प्रचुर संख्या में पाए गए हैं । टैनिक अम्ल, हाइड्रौक्सी बैंजौइक अम्ल, हाइड्रौक्सी आइसोथेलिक अम्ल भी इसमें पाए जाते हैं । पत्रों का सक्रिय घटक रंगहीन उड़नशील तेल, एल्केलाइड्स, विटामिन्स ही वे सक्रिय तत्व हैं जो औषधीय प्रयोजन की दृष्टि से उपयोगी हैं वे इस सर्वोपलब्ध तथाकथित वाइल्ड औषधि को उपयोगी सिद्ध करते हैं । 

आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोग निष्कर्ष-

वैज्ञानिक प्रयोगों में यह पाया गया है कि निर्गुण्डी पत्रों का क्वाथ प्रायोगिक जंतुओं के जोड़ों में कृत्रिम रूप से उत्पन्न की गई सूजन (गठिया) की प्रगति रोककर यथास्थिति लाता है । फलों का चूर्ण भी दर्द निवारक पाया गया है ।

विभिन्न वैज्ञानिकों ने इसके बाह्य तथा आंतरिक प्रयोगों से पाया है कि यह नाड़ी तंतु जाल को सशक्त बनाता है, अपने वेदना निवारक गुण से मांस पेशियों, नाड़ियों तथा संधियों के दर्द को मिटाता है । मूलतः इसके पत्रों का बाह्य प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है, ऐसा आर्युवेद के विद्वानों का अनुभव है । 

ग्राह्य अंग-

वैसे तो इस पौधे के सभी भाग औषधीय गुणों से युक्त है, परन्तु पत्तियाँ और जड़ अपेक्षाकृत अधिक प्रयुक्त किए जाते हैं । छाल तथा पंचांग चूर्ण भी प्रयुक्त होते हैं । 

मात्रा-

पत्र स्वरस- 10 से 20 ग्राम (2 से 4 चम्मच) । मूल की छाल का चूर्ण- 1 से 3 ग्राम । बीज चूर्ण अथवा फल चूर्ण-3 से 6 ग्राम । 

निर्धारणानुसार उपयोग-

सिर दर्द आदि में पत्तों के स्वरस का लेप सिर पर करने से तुरंत आराम मिलता है, ऐसा आर.एन.खोरी का मत है । कटि प्रदेश (सेक्रोपेल्विक संधि) की वात सूजन में निर्गुण्डी पत्र स्वरस का पान 10 से 20 ग्राम मात्रा में मरते हैं । ऐसा अनुभव है कि सियाटिका स्लिप्ड डिस्क, लम्बेगं, मांस पेशियों को झटका लगने के कारण आई सूजन में निर्गुण्डी त्वक चूर्ण या पत्र का क्वाथ कम अग्नि पर पकाकर देने से (20 ग्राम दिन में 3 बार) कष्ट तुरंत समाप्त हो जाता है । निर्गुण्डी स्वरस 3 तोला दिन में 3 बार शहद के साथ देने से टिटनेस जैसे रोग में शीघ्र लाभ पहुँचते देखा गया है ।

निर्गुण्डी पत्र क्वाथ तथा पंचांग क्वाथ की भाप का प्रयोग रह्यूमेटिक रोगों में किया जाता है । गठिया चाहे वह जीवाणु संक्रमण की प्रतिक्रिया जन्य हो अथवा वार्धक्य की परिणति, सूजन उतारने, दर्द निवारण में निर्गुण्डी त्वक चूर्ण, पत्र चूर्ण या ताजे स्वरस से तुरंत लाभ मिलता है । 

अन्य उपयोग-

मुँह के छालों में इसके क्वाथ से कुल्ला कराते हैं । अण्डशोथ में इसके पत्रों को गरम करके बाँधते हैं । कान में दर्द में भी पत्र स्वरस लाभ पहुँचाता है । यह लीवर की सूजन तथा कृमियों को मारने के लिए भी प्रयुक्त होती है । विविध ज्वरों में अनुपान रूप में प्रयुक्त करके इसके स्वरस को ज्वरघ्न के रूप में भी प्रयुक्त किया गया है । पृष्ट संख्या: 1 2

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