Friday 25 September 2015

अजमोदा

अजमोदा, अजवायन से मिलता-जुलता होता है, लेकिन इसका पौधा अजवायन के पौधे से थोड़ा बड़ा होता है और इसके दाने भी अजवायन से बड़े आकार के होते हैं। यह बहुत गुणकारी और अनके व्याधियों को दूर करने की क्षमता रखने वाला पौधा होता है। विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- अजमोदा। हिन्दी- अजमोदा। मराठी- अजमोदा। गुजराती- वोडिअजमोदा। बंगाली- रान्धुनी। तेलुगू- अजमोद। कन्नड़- अजमोदवोमा। तमिल- अशम्तवोवम। फारसी- करफ्स। अरबी- हवुलफर्त केरफस। लैटिन- कैरम राक्सबरघियानम। गुण : यह चरपरा, तीक्ष्ण, जठराग्नि बढ़ाने वाला, कफ तथा वात को नष्ट करने वाला, गरम, जलन करने वाला, हृदय को प्रिय, वीर्यवर्द्धक, बलकारक तथा हलका है और नेत्र रोग, कफ, वमन, हिचकी तथा वस्तिगत रोगों को दूर करने वाला है। परिचय : इसके पौधे अजवायन की तरह, लेकिन उससे थोड़े बड़े लगभग 3 फीट ऊँचे होते हैं। इसके पत्ते बड़े कटावदार और कंगूरेदार होते हैं। यूँ तो यह सारे भारत में पैदा होता है पर पंजाब और उत्तरप्रदेश में विशेष तौर पर इसकी पैदावार होती है। उपयोग : अपच, उदर विकार, मूत्र विकार, पथरी, उदरशूल, वात रोग और कृमि नष्ट करने के लिए यह खास तौर पर उपयोगी और लाभप्रद सिद्ध होता है। * आयुर्वेदिक योग के रूप में आयुर्वेदिक निर्माताओं द्वारा निर्मित अजमोदादि चूर्ण और अजमोदिवटक के नाम से आयुर्वेदिक स्टोर्स पर यह मिलता है। * इसका तेल भी मिलता है, जिसे लगाने से वातजन्य और बादी या बाय का दर्द ठीक होता है। इसकी धूनी देने से बच्चों की गुदा के कृमि मर जाते हैं। * अजमोदा और लौंग के ऊपरी भाग (टोपी) को पीसकर शहद के साथ चटाने से उलटी आना बन्द होता है। इसका चूर्ण 3 ग्राम और मूली का रस 1 चम्मच मिलाकर कुछ दिन तक प्रतिदिन 1-2 बार चाटने से पथरी गलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। * इसको पानी में पीसकर लेप करने से अंग की वेदना का शमन होता है। यह बदहजमी, दस्त लगना और उल्‍टी होना आदि व्याधियों के लिए बहुत गुणकारी है। * महिलाओं के लिए यह कष्टार्तव एवं मासिक स्राव की रुकावट दूर करने वाली श्रेष्ठ औषधि है। इसके कुछ दाने पान में रखकर चूसने से सूखी खाँसी ठीक होती है। पसली के दर्द के लिए इसे गर्म कर बिस्तर पर बिछाकर लेटना व ऊपर से चादर ओढ़कर लेटना बहुत लाभकारी होता है।

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