Sunday 27 September 2015

अतीस

अतीस : अनेक गुणों से युक्त
हमारे देश में नाना प्रकार की जड़ी-बूटियाँ और वनस्पतियाँ उपलब्ध हैं और प्रत्येक जड़ी-बूटी किसी न किसी हेतु के लिए उपयोगी होती है। 

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत-विषा, अतिविषा, हिंदी- अतीस। मराठी- अतिविष। गुजराती- अति बखनी कली। बंगला- आतइच। तेलगू- अतिबसा। कन्नड़- अति विषा। तामिल- अति विषम। पंजाबी- अतीस। फारसी- बज्जे तुर्की। इंग्लिश- इंडियन अतीस। लैटिन- एकोनाइटम हेटरोफाइलम। 

गुण : अतीस उष्णवीर्य, कटु तथा तिक्त रसयुक्त, पाचक, अग्निदीपक है तथा कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष, खांसी, वमन और कृमि, इन सब व्याधियों को दूर करने वाली है। 
इसी के अंतर्गत अनेक रोगनाशक उत्तम द्रव्य अतीस के औषधीय उपयोग और गुण लाभ के बारे में विवरण प्रस्तुत है।

अतीस को अतिविषा और शुक्लकंदा के नाम से भी जाना जाता है . यह हिमालय में ऊँचाई पर पाया जाता है. इसका पौधा 2-3 फुट तक ऊंचा होता है. इसके नीले रंग के फूल होते हैं . यह विषनाशक माना गया है . यह काफी मंहगा होता है . अतीस दो प्रकार की होती है . सफ़ेद रंग की मीठी अतीस ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है. दूसरी तरह की अतीस भूरे रंग की होती है .यह कडवी होती है . अगर कमजोरी है तो यह बहुत लाभदायक रहती है . बुखार होने पर आधा ग्राम पावडर शहद के साथ लें . बाद में पानी पी लें . अतीस गिलोय के साथ ले ली जाए तो बुखार बहुत जल्द ठीक होता है . यह दिन में दो तीन बार लेना चाहिए . वास्तव में अतीस जिस भी प्रकार की औषधि में मिलाकर ली जाए , उसी की कार्यक्षमता को बढ़ा देती है . 

पेचिश , colitis संग्रहणी या अतिसार होने पर इसका पावडर दही या पानी के साथ लेना चाहिए . Irritable bowel syndrome होने पर , अतीस +बिल्वादी चूर्ण +अविपत्तिकर चूर्ण और मुक्ताशुक्ति भस्म बराबर मात्रा में मिलाकर 3-4 ग्राम की मात्रा में लेना चाहिए . कमजोरी और शिथिलता हो तो इसका पावडर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लेना चाहिए. 

बच्चों की मानसिक व शारीरिक कोई भी समस्या हो या रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना हो तो अतीस घिसकर शहद के साथ चटाएं. बच्चों को अतीस का एक ग्राम का आठवां अंश यानी एक रत्ती अतीस दिन में 2-3 बार दिया जा सकता है . दो तीन मास के बच्चे को एक ग्राम का दसवां अंश ही शहद में मिलाकर या फिर दूध में मिलाकर देना चाहिए . इससे बच्चों की एलर्जी की समस्या तो हल होती ही है ; साथ ही यह खांसी में भी लाभकारी है . इससे बच्चों के हरे पीले दस्त भी ठीक होते हैं और दांत निकलते समय जो परेशानियां होती हैं ; उनसे भी छुटकारा होता है . अतीस बच्चों के मस्तिष्क को भी शक्ती प्रदान करता है और शरीर को भी . त्वचा और मांसपेशियाँ भी इसको लेने से स्वस्थ रहती हैं .

परिचय : यह 2-3 फीट ऊंचा पौधा होता है और पश्चिमोत्तर हिमालय में कुमाऊं, सिक्किम तथा चम्बा के क्षेत्र में 6 से 15 हजार फीट ऊंची चोटियों पर पाया जाता है। यह जड़ी-बूटी बेचने वाली दुकानों पर उपलब्ध रहती है। यह बहुत कड़वी होती है। 

रासायनिक संघटन : इसमें अतीसिन नामक बिना रवेदार क्षाराभ होता है, जो बहुत कड़वा होता है पर विषैला नहीं होता। इसके अतिरिक्त इसमें दो रवेदार क्षाराभ हेटरेतीसिन और हेतिसिन तथा प्रचुर मात्रा में स्टार्च पाया जाता है। 

उपयोग : यह जड़ी त्रिदोष शामक है। अत्यंत कड़वा होने के कारण कफ और पित्त का तथा उष्ण होने से वात का शमन करने वाली होती है। इन तीनों गुणों के कारण यह दीपन, पाचन, ग्राही, अर्शनाशक, कृमिनाशक, आम पाचन, रक्त शोधन तथा शोथ हर के कार्य करने वाली होती है, अतः इन व्याधियों को दूर करने वाली औषधि बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। 

अतीस बालकों के कई रोगों में बहुत उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध होती है अतः इसे 'शिशु भैषज्य' कहा जाता है। बच्चों के लिए जितनी भी घुटियाँ बाजार में मिलती हैं, उन सबमें अतीस जरूर होती है। यह एक निरापद जड़ी है, अतः इसका सेवन निर्भीक होकर किया जा सकता है। औषधि के रूप में इसके घरेलू उपयोग का विवरण प्रस्तुत है। 

मात्रा : इसकी मात्रा 1 या 2 रत्ती की है। इसे सुबह-शाम शहद में मिलाकर या दूध के साथ लेना चाहिए। इसका फाण्ट भी बनाया जाता है। आमातिसार होने पर इसका फाण्ट 2-2 चम्मच दिन में तीन बार लेना चाहिए।

No comments:

Post a Comment