Saturday 3 October 2015

केवांच

रंग : केवांच की फली बाहर से हरे एवं बीच में काले रंग की होती है।

स्वाद : यह खाने में चटपटी होती है।

स्वरूप : केवांच की बेल होती है जिसमें सेम की तरह फली लगती है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि केवांच की फलियों पर छोटे-छोटे रोएं होते हैं। जिसको छूने से त्वचा पर खुजली पैदा होती है।

प्रकृति : इसकी प्रकृति गर्म होती हैं।

हानिकारक : केवांच का अधिक मात्रा में उपयोग करना बवासीर के रोगियों के लिए हानिकारक हो सकता है।

दोषों को दूर करने वाला : इसमें गुलरोगन मिलाकर उपयोग करना चाहिए। इससे केवांच में मौजूद दोष नष्ट होते हैं।

तुलना : इसकी तुलना हम उटंगन के बीजों से कर सकते हैं।

मात्रा : इसका प्रयोग 9 ग्राम की मात्रा में किया जाता है।

गुण : केवांच शरीर में धातु को बढ़ाता है और शरीर को शक्तिशाली बनाता है। यह कफ और रक्त-पित को खत्म करता है। इसके पत्तों के संग कालीमिर्चमिलाकर खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। गर्मी से होने वाले रोगों में इसके पत्तों का रस पीने से आराम मिलता है।

विभिन्न रोगों में उपचार :

1. नपुंसकता: केवांच के बीजों की मींगी निकालकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2 से 6 ग्राम की मात्रा में रात को सोते समय मिश्री मिले गर्म दूध के साथ पीएं। इससे नपुंसकता दूर होती है।

2. दस्त: केवांच की सब्जी को दस्त रोग में रोगी को खिलाने से दस्त का बार-बार आना ठीक होता है।

3. खूनी अतिसार: केवांच (कपिकच्छू) की जड़ का रस 10 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने और इसी की जड़ को दूध के साथ घिसकर पीने से दस्त के साथ खून आना बंद होता है।

4. कमजोरी: केवांच की जड़ का काढ़ा 40मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से स्नायु की कमजोरी मिटती है। इसकी जड़ का रस 10-20मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से कमजोरी भी दूर होती है।

5. पक्षाघात (लकवाफालिस): लगभग 20 से 40मिलीलीटर केवांच की जड़ का काढ़ा या 10 से 20मिलीलीटर इसकी जड़ का रस सुबह-शाम लकवा से पीड़ित रोगी को पिलाने से रोग ठीक होता है।

6. भ्रम एवं रोग भ्रम: लगभग 20 से 40 मिलीलीटर केवांच की जड़ का काढ़ा या रस 10 से 20मिलीलीटर सुबह-शाम रोगी को देने से भ्रम रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

7. प्रलाप या बड़बड़ाना: लगभग 20 से 40मिलीलीटर केवांच (कपकच्छु) की जड़ का काढ़ा या10 से 20 मिलीलीटर जड़ का रस प्रलाप या बड़बड़ाने के रोगी को देने से रोग ठीक होता है

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